कौन हैं यमन के हूती विद्रोही जिन्होंने अबुधाबी एयरपोर्ट पर किया हमला, बेहद पुराना है इतिहास
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हिमाचल जनादेश, न्यूज़ डेस्क
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के अबू धाबी में सोमवार को यमन के हूती विद्रोहियों ने संदिग्ध ड्रोन हमला किया। इन विस्फोटक हमलों में अभी तक तीन लोगों के मारे जाने की खबर है जिनमें दो भारतीय व एक पाकिस्तानी नागरिक शामिल है। अबू धाबी पुलिस ने बताया कि अबू धाबी के औद्योगिक शहर में एडीएनओसी के भंडारण टैंक के पास तीन पेट्रोलियम परिवहन टैंकरों में आग लगने से दो भारतीय और एक पाकिस्तानी नागरिक की मौत हो गई और छह अन्य घायल हो गए। अबू धाबी पुलिस ने जानकारी दी है कि अज्ञात हमलावरों ने मुसाफ्फा इलाके में धमाका किया।
यमन के हूती विद्रोहियों ने ली जिम्मेदारी
यूएई में हुए इन ड्रोन हमलों की जिम्मेदारी हूती विद्रोहियों ने ली है। ईरान समर्थित यमन के हूती विद्रोहियों ने कहा कि वे संयुक्त अरब अमीरात में संदिग्ध ड्रोन हमलों के पीछे थे। विद्रोहियों ने कहा कि उन्होंने संयुक्त अरब अमीरात द्वारा हाल ही में यमन में की गई कार्रवाई के जवाब में ये कदम उठाया है और अबू धाबी को निशाना बनाया। पिछले हफ्ते अमीरात समर्थित 'सैनिकों' ने हूतियों को तेल समृद्ध प्रांत शबवा में एक अप्रत्याशित हार का मुंह दिखाया था। अमीरात ने हाल ही में यमन में सऊदी नेतृत्व वाले गठबंधन में स्थानीय 'सैनिकों' के समर्थन में अपने प्रयासों को तेज कर दिया है।
कौन हैं हूती विद्रोही और हूती आंदोलन?
हूती आंदोलन को आधिकारिक तौर पर अंसार अल्लाह कहा जाता है और बोलचाल की भाषा में यह हूतियों एक इस्लामी राजनीतिक एवं सशस्त्र आंदोलन है जो 1990 के दशक में उत्तरी यमन में सादा (Saada) से उभरा था। हूती आंदोलन मुख्य रूप से जैदी शिया बल है, जिसका नेतृत्व बड़े पैमाने पर हूती जनजाति करती है। यह यमन के उत्तरी क्षेत्र में शिया मुस्लिमों का सबसे बड़ा आदिवासी संगठन है। हूती उत्तरी यमन में सुन्नी इस्लाम की सलाफी विचारधारा के विस्तार के विरोध में हैं।
दो राष्ट्रपतियों को यमन की सत्ता से बेदखल कर चुके हैं हूती
हूतियों का यमन के सुन्नी मुसलमानों के साथ खराब संबंध का इतिहास रहा है। इस आंदोलन ने सुन्नियों के साथ भेदभाव किया, लेकिन साथ ही उन्हें भर्ती भी किया है और उनके साथ गठबंधन भी किया है। हुसैन बद्रेद्दीन अल-हूती के नेतृत्व में, समूह यमनी के पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह के विरोध के रूप में उभरा था, जिस पर उन्होंने बड़े पैमाने पर वित्तीय भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और सऊदी अरब और अमेरिका द्वारा समर्थित होने की आलोचना की।
2000 के दशक में विद्रोही सेना बनने के बाद हूतियों ने 2004 से 2010 तक यमन के राष्ट्रपति सालेह की सेना से छह बार युद्ध किया। साल 2011 में अरब देशों (सऊदी अरब, यूएई, बहरीन और अन्य) के हस्तक्षेप के बाद यह युद्ध शांत हुआ। हालांकि तानाशाह सालेह को देश की जनता के प्रदर्शनों के चलते पद छोड़ना पड़ा। इसके बाद अब्दरब्बू मंसूर हादी यमन के नए राष्ट्रपति बने। उम्मीदों के बावजूद हूती उनसे भी खुश नहीं हुए और फिर से विद्रोह छोड़ दिया और उन्हें राष्ट्रपति पद से हटाकर राजधानी सना को अपने कब्जे में ले लिया।
क्यों लड़ रहे हैं हूती?
कहते हैं कि जब हूती यमन की सत्ता पर काबिज हो गए तो पड़ोसी देशों के सुन्नी मुसलमानों में डर का माहौल फैल गया। सुन्नी बहुल सऊदी अरब और यूएई इससे घबरा गए जिसके बाद वे मदद के लिए अमेरिका और ब्रिटेन के पास पहुंचे। पश्चिमी देशों की मदद से हूतियों के खिलाफ हवाई और जमीनी हमले करने शुरू कर दिए और इन देशों ने सत्ता से बेदखल हुए हादी का समर्थन किया। इसका असर यह हुआ कि यमन अब गृह युद्ध का मैदान बन चुका है। यहां सऊदी अरब, यूएई की सेनाओं का मुकाबला हूती विद्रोहियों से है।
सऊदी नेतृत्व गठबंधन को अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस से सैन्य और खुफिया सहायता मिली। युद्ध की शुरुआत में सऊदी अधिकारियों ने भविष्यवाणी की थी कि यह केवल कुछ ही हफ्तों तक चलेगा। लेकिन छह साल के सैन्य गतिरोध जारी है। अगस्त 2015 में बंदरगाह शहर अदन में उतरने के बाद गठबंधन की जमीनी सैनिकों ने हूतियों और उनके सहयोगियों को दक्षिण से बाहर खदेड़ने में मदद की। हालांकि, विद्रोहियों को सना और उत्तर-पश्चिम के अधिकांश हिस्सों से नहीं हटा पाए।
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