अपार शक्तियों के भंडार है श्री देवता धानेश्वर चतुर्मुखी महादेव

हिमाचल जनादेश ,शिमला
ज़िला शिमला के उपखंड कुम्हारसेन (शांगरी-गढ़) में मान्यता प्राप्त देव है,ग्राम पंचायत भरैड़ी के अराध्य देवता धानेश्वर महादेव।महादेव जी की 600 साल प्राचीन ऐतिहासिक कोठी भरैड़ी ग्राम में स्थिति है।जनश्रुति के अनुसार धानेश्वर महादेव जी अपने 5भाईयों और 1लाडली बहन के साथ कैलाश-मानसरोवर से लगभग 7000वर्ष पुर्व इस धरा पर अवतरित हुए।
महादेव जी का मूल स्थान लवाण गाँव में है,जहाँ महादेव जी सहस्त्रों-वर्ष पुर्व धान के बीच से प्रकट हुए थे और तत्पश्चात आज तक धानेश्वर के नाम से विख्यात हैं।महादेव के अधिकार क्षेत्र में लगभग एक-दर्जन से भी अधिक गाँव सम्मिलित हैं,जैसे
कठीण,उर्शु,लवाण,कणा,गुंथला,कींगल,मानण,चेड़ा,प्राश्न,भरैड़ी,कवाड़ा,भड़ेच,दोगरी,नरेडा इत्यादि।इसके अलावा महादेव जी के विभिन्न क्षेत्रों में कई स्थान भी है,जैसे तेश्ण,सराहन,बलींड़ा ,देरठु,हाटु,शिरि-खंड,खेगसु,छबिशी इत्यादि।महादेव के दरबार में प्रतिवर्ष दीपावली मेले का आयोजन होता है जिसमें,महादेव जी रथ में आरूढ़ होकर जलते अलाव के चारों ओर ठमरू नृत्य की परिक्रमा करते है।
3-4आषाढ़ को महादेव के दरबार में प्रतिवर्ष भव्य जातर का आयोजन भी किया जाता है,जोकि कुम्हारसेन उपखंड में लगने वाले बड़े मेलों में शुमार है।कार्तिक माह में धानेश्वर महादेव जी चैरशी फेर पर क्षेत्र भ्रमण पर निकलते हैं और घर-घर जाकर भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
छमाही में शाख ग्राहणे और नयी फसल का एक भाग लेने वाद्ध यंत्र सहित अपने अधिकार क्षेत्र में तांबठ रूप में शिरकत करते हैं।भरैड़ी में भी ब्रह्मण लोग शाख लगाते हैं,यह ऋषि पंचमी के दिन होता है ब्राह्मण वधुएं शाख को लेकर बावड़ी पर जाती है तत्पश्चात देवता को शाख व मोड़ी-अखरोट अर्पित किये जाते हैं।इसी दिन भुन्जू का पर्व भी होता है।जिसमें सुब्ह-सुब्ह गायों का पुजन करके उन्हे चिलड़ी भोग खिलाते हैं,मीठा भात बनाते है और वन-गवाड़ी की पूजा की जाती है।
महादेव जी के अधीनस्थ अनेकों शक्तियाँ विचरण करती हैं जिसमें प्रमुख हैं
नाग-नागीन,दुर्गा,महाकाली,जोगणिया,मातरिकांए,झैहला-लाटा,जुंड़ला-जड़,बारह बिओ,मरेच्छ,डूम,लांकड़ा,नारसिंह,गौण,नौढ़-भौढ़,शुर-वीर इत्यादि।वैसे तो महादेव जी के इतिहास,त्योहारों और पर्वों और लीलाओं के सबंध में जितना लिखा जाए उतना कम है पर यहाँ पर महादेव की एक लीला का वर्णन करना चाहुंगा,कहा जाता है कि सदियों पुर्व आकाल का प्रकोप प्रदेश पर पड़ा,आनाज की बहुत कमी हुई जिस कारण आस-पास के क्षेत्रों में भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गयी।क्षेत्र के सभी लोग महादेव की शरण में आये और बस फिर क्या था अगले ही पल अपने जेठे स्थान उर्शु में जहाँ महादेव जी लिंग रूप में अपनी पुर्ण कलाओं सहित देवरे मे विराजमान हैं-जब भी क्षेत्र में किसी व्यक्ति को मृत्यु होती है तो इस स्थान में महादेव को मृत कफ़न अर्पण किया जाता है।
उर्शु-लवाण में धान से खेत लहराने लगें।सिर्फ इतना ही नहीं धान की उपज इतनी हुई की लोग धान समेटते समेटते थक गये पर धान की पैदावार तनिक भी कम ना हुई।यह चमत्कार देख आस पास के क्षेत्रों के लोग भी धानेश्वर महादेव की शक्ति से परिचित हो महादेव के समक्ष नतमस्तक हुए।महादेव जी ने रियासती काल में भी किसी देवता या राजा की वज़ीरी अथवा चाकरी नहीं सविकारी,इसके विपरीत महादेव जी ने बुरी परवर्ती वाले अनेको देवों,ब्राहमणों,असुरों,राजाओं और मुआणो का समुल् विनिश कर इस धरती को पावन किया था।
महादेव जी को करसोग,आनी,निरमण,कोटगढ़ आदि क्षेत्रों में भरैड़ी देउ,उर्शु-देउ और चतुर्मुखी(चार मुखों वाला) महादेव के नाम से भी जाना जाता है।अंत में आप सबका ज्यादा वक्त ना लेते हुए बस इतना ही कहना चाहूँगा कि "शिरे सजदी गंगा हो माईया बै-गोड़े सर्पा रो हारा,ठारा करडू रा मालिक देवा बै-तेरी जय जय कारा।
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