कविता : आया पतझड़

हिमाचल जनादेश,डॉ एम डी सिंह महाराजगंज
जाते शिशिर आते बसंत का
दिख रहा आता संदेशू
हिल रहे मुरझाए पीत पर्ण
वृक्षों में हलचल जागी
आया पतझड़
शीत आखिरी जोर लगाता
पश्चिमी हवाओं को उकसाता
श्वेत चादर उढ़ा पृथ्वी को
पथ पथिक दोनों को भरमाता
थक हार जाने को है
आया पतझड़
गेहूं सरसों चना मटर ने
अलसी लतरी और रहर ने
चादर बिछा धरती पर हरा
तरुवरों को हांक लगाया
उठो-उठो जागो तुम सब भी
धुलने धूल धूसरित पीत पात को
आया पतझड़
भरभूजन की आंखें चमकीं
भरभूजे की नजरें पेड़ों पर अटकीं
खरहरा खांचा और भरसायं को
फिर जगाने का अवसर आया
पक्षियां ले रहीं अंगड़ाई छोड़ घोंसले
गिलहरी भी ठंड को दिखा रही अकड़
आया पतझड़
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