जनादेश विशेष:देश का सबसे बड़ा सवाल -पत्रकारों की हितों की रक्षा और सुरक्षा करेगा कौन,राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर विचार गोष्ठी पत्रकारों ने रखी मन की बात

हिमाचल जनादेश,एम.एम.डैनियल(संपादक)
राष्ट्रीय स्तर पर प्रेस दिवस के आयोजन को लेकर आज देश भर में कोविड-19 को लेकर तमाम इलेक्ट्रॉनिक्स व प्रिंट मीडिया के पत्रकारों के साथ लोक संपर्क विभाग द्वारा विचार गोष्ठी की गई।
जिसमें पत्रकारों की कोविड-19 आगाज से लेकर वर्तमान तक की कैसी भूमिका में सकारात्मक नकारात्मक दोनों ही दिशा में विस्तार पूर्वक चर्चा हुई। जिसमें निसंदेह पत्रकारों द्वारा देशभर में इस महामारी के दौर में भी बेहतरीन कवरेज देकर जन-जन को एक-एक पल की एक-एक घटनाक्रम की जानकारी देने में जहां कोई कसर नहीं छोड़ने की जमकर सराहना हुई। वही इस दौर में देश भर में कई पत्रकार इस महामारी की चपेट में आने से जहां संक्रमण का शिकार हुए। वहीं कईयों को जान तक से हाथ भी धोना पड़ गया।
एक नजर इधर भी -चंबा:राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर वेबीनार के माध्यम से परिचर्चा आयोजित
विचार गोष्ठी में तमाम विचारों में एक बात मुख्य रूप से सामने आई कि केंद्र से लेकर राज्य सरकार को हर एक पत्रकार के जीवन की सुरक्षा को लेकर कदम उठाने की आज बेहद आवश्यकता है। जिसमें ना केवल एक्रेडिटेड पत्रकार ही बल्कि जो सामान्य स्तर के पत्रकार है उनके जीवन सुरक्षा संदर्भ में भी सरकार को आज सोच विचार कर नई पहल करनी चाहिए ताकि देश के चौथे स्तंभ कहलाए जाने वाले इस वर्ग की सुरक्षा व्यवस्था में एक मील का पत्थर स्थापित हो सके। जिससे आने वाले समय में लोकतंत्र के स्तंभ की और मजबूती मिल सके। मगर इस दिशा में केंद्र व राज्य सरकार क्या कदम उठाती है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
मगर इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि जनता कर्फ्यू से लेकर लॉकडाउन और उसके बाद अनलॉकडाउन से वर्तमान समय में देखा जाए तो प्रिंट वाले इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया के पत्रकारों ने सरकार व जिला प्रशासन सहित उपमंडल स्तरीय तौर पर की गई कोविड-19 व्यवस्था को ना केवल जन-जन तक पहुंचाया बल्कि हर कदम पर हर तरह से सरकार व प्रशासन का सहयोग देने में भी कोई कमी शेष नहीं छोड़ी जो कि यह दर्शाता है कि आपातकालीन परिस्थितियों में सरकार के साथ केवल उनके अधीन तमाम विभागों सहित विपक्ष ही नहीं बल्कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ने कंधे से कंधा मिलाने के लिए भी तत्पर रहता है जिसके चलते सरकार का भी दायित्व बनता है कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहलाए जाने वाले पत्रकारों को भी वे सरकार का मूल अंग समझते हुए उनकी हितों की रक्षा व जीवन की सुरक्षा के लिए आज पग उठाए।
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