जनादेश विशेष:कोरोना काल और शिक्षा व्यवस्था,एक चुनौती

हिमाचल जनादेश
वर्तमान समय निस्संदेह जटिल और चुनौतियों से भरा है। समाज की कोई भी व्यवस्था ऐसी नहीं जिसपर इस वैश्विक महामारी का असर न पड़ा हो। अन्य समस्याओं के साथ ही शिक्षा व्यवस्था एक गंभीर चुनौती बन चुकी है। अपने भविष्य निर्माण में जुटे विद्यार्थियों के सामने असमंजस की स्थिति चिंता जनक है परिस्थितियां इतनी खतरनाक हो सकती है, इस की शायद किसी ने कल्पना तक भी नहीं की होगी।
विद्यालयी शिक्षा तो और भी चिंता जनक हो चुकी है. सरकार के अथक प्रयासों के बावजूद भी संक्रमण का तीव्रता से बढ़ना घोर चिंता का विषय बन गया है। बार बार विद्यालयों को बंद करना जरूरी भी और मजबूरी भी बन चुकी है।
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यद्यपि सरकार एवं शिक्षा विभाग द्वारा इस काल में भी सुचारू व्यवस्था बनाए रखने के लिए गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं परंतु परिणाम संदेह जनक हैं क्योंकि कक्षा शिक्षण का कोई विकल्प नहीं हो सकता,यह अटल सत्य है। यद्यपि अध्यापक वर्ग ने छात्रों को घर घर भी अध्ययन सामग्री पंहुचाने का भरपूर प्रयास किया है परंतु बात वही आकर रुक जाती है।
अभिभावक और अध्यापक दोनों चिंतित हैं क्योंकि दोनों का बच्चों की शिक्षा के साथ अटूट संबंध है। इस काल में शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्र निस्संदेह दयनीय स्थिति में हैं और स्वभाविक भी है क्योंकि ऐसे हालात में शिक्षा में कैसी गुणवत्ता आ पाएगी, यह संदेहजनक है।
यद्यपि विभाग द्वारा शीतकालीन अवकाश न प्रदान करने की बात भी की जा रही है मगर पर्वतीय क्षेत्रों में भारी हिमपात एवं मैदानी इलाकों में कोहरे की समस्या से हर कोई परिचित है कि ऐसा संभव ही नहीं अपितु नामुमकिन भी है आखिरकार बच्चों के स्वास्थ्य एवं जीवन का प्रश्न है और जीवन सबसे अनमोल है,इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता है।
जितनी गंभीर समस्या है उतना ही गंभीर चिंतन और कार्यनीति की आवश्यकता है ताकि समय रहते समस्या का निराकरण किया जा सके। सरकार और व्यवस्था को इस दिशा में सभी विकल्पों पर गंभीरता से मंथन अपरिहार्य है।
विक्रम वर्मा(स्वतंत्र लेखक,चंबा हि.प्र.)
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